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Showing posts from July, 2023

तुम या मैं

                                                                          Picture @anand_aadarsh जिंदगी के इस सफर में चलते-चलते, जब हाथ  तुम्हारा अचानक छूट जाता है तो, इस अंधेरे में तुम हो या मैं हूं। फूलों से महका था पूरा घर रोशनी से जग-मग था आंगन शाम ढले, बैंड-बाजे के साथ  बाहर खड़ी कार में  मैंने अपने ही बच्चे को नहीं छुआ  तो, इस शांत शोर में  तुम थे या मैं थी। अपनी बालकनी में खड़ा  मैं उसके दरवाजे तकता हूं दरवाजे से चिपका ताला और नीचे बिखरे बंद लिफाफों के नीले स्याह से निकल के  उभरते भावनाओं में  तुम हो या मैं हूं।

Hostel diaries

बालकनी से ट्रेन की आवाज आती है। ट्रेन मेरी जिंदगी का एक अहम हिस्सा होते जा रहा है। वो हिस्सा जो खुशी और गम साथ देते हैं। वो हिस्सा जिसमे दिल की आवाज कानों तक जाती है। ट्रेन की आवाज अभी मुझे घर की याद दिलाती है। वो मुझे इस छोटे से कमरे से निकाल के मेरे घर के कमरे में खिड़की के पास छोड़ के आती है। फिर २सेकंड के बाद मैं अपने आप को बालकनी तकते हुए पाती हूं। ट्रेन नदी की तरह है और स्टेशन घाट की तरह।  स्टेशन वाले घाट पे बैठ के भी वही महसूस होता है जो नदी के किनारे बैठ के होता है। बिल्कुल थेरेपी के जैसा या, फिर यूं कहूं की अपने अकेलेपन का अहसास नही होता है।  इस खुशी में खुश होना अच्छा है की मैं अकेले सफर नहीं कर नहीं।  इस खुशी में खुश होना अच्छा है की मेरी ही तरह और लोग भी अपने घरों से निकल रहे है। अपनो से दूर है और खुद को ढूंढ रहे हैं।

मैं

मैं एक ही साथ हर जगह  खुद को महसूस कर रही हूं। कल में भी मैं हूं जो मेरी आंखों के सामने  हु-ब-हु तैर रहा है।  आज में भी मैं  खुद को लिख रही हूं। आगे आने वाले  वक्त मे मैंने खुद को  लिख रखा है।  सुबह बिस्तर से जो  जागी है, वो मैं थी।  जिसने आईने में बाल  संवारे है २ घंटे  पहले वो मैं थी। रात के सपने में मैंने  उससे कैसेट ली पर मैं उससे मिली कहां? वो रास्ता क्या था? आस-पास के लोग कहां थे? मुझे कुछ याद नहीं।  बस भीड़ में शान्ति थी। हां, इतना याद है वो उदास था।  क्या मैं हर जगह हूं? क्या मैं सिंहपर्णी का फूल हो गई हूं? हवाओं के साथ हर जगह  जाने लगी हूं? बीच रास्ते में १से २ २ से ४, ४ से ८, ८ से १६ होके  हर जगह पहुंच जाती हूं। मेरी सोच में बहुत बड़ी और गहरी परत  बनती जा रही है, और, मैं हर परत में हूं। वो सारी जगहें जिनमे मैं थी, पर, मुझे याद नहीं और जो मुझे याद है वो सब एक फूंक से उड़ते जा रहे हैं।  और दूसरे ही पल मैं हर जगह खुद  को महसूस कर रही हूं।  पर, आलम यह है की मैं बस खुद को अभी लिख रही...