बालकनी से ट्रेन की आवाज आती है। ट्रेन मेरी जिंदगी का एक अहम हिस्सा होते जा रहा है। वो हिस्सा जो खुशी और गम साथ देते हैं। वो हिस्सा जिसमे दिल की आवाज कानों तक जाती है। ट्रेन की आवाज अभी मुझे घर की याद दिलाती है। वो मुझे इस छोटे से कमरे से निकाल के मेरे घर के कमरे में खिड़की के पास छोड़ के आती है। फिर २सेकंड के बाद मैं अपने आप को बालकनी तकते हुए पाती हूं। ट्रेन नदी की तरह है और स्टेशन घाट की तरह।
स्टेशन वाले घाट पे बैठ के भी वही महसूस होता है जो नदी के किनारे बैठ के होता है। बिल्कुल थेरेपी के जैसा या, फिर यूं कहूं की अपने अकेलेपन का अहसास नही होता है।
इस खुशी में खुश होना अच्छा है की मैं अकेले सफर नहीं कर नहीं।
इस खुशी में खुश होना अच्छा है की मेरी ही तरह और लोग भी अपने घरों से निकल रहे है। अपनो से दूर है और खुद को ढूंढ रहे हैं।
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