यादों का पिटारा खुलता है।
वो यादें जिनका हिस्सा मैं रही
और वो भी जिनकी यादों से
मैं गायब रही।
वो सारी यादें
लकड़ी के ताबूत में रखें
पुराने कपड़ों सी महकती हैं।
कुछ ऐसी यादें है जिनकी
परत मैं छू सकती हूं,
और कुछ ऐसी भी
जिन्हे याद करने से मैं
उधड़ जाऊंगी।
घर से दूर रहने की कीमत बहुत है।
मां - बाप अचानक से बूढ़े दिखने लगते है।
छोटे से घर में भी खालीपन
तैर रहा होता है।
और एक शक्श का सिंहपर्णी का फूल
हो जाना
जिंदगी भर खलता रहेगा।
घर आज भी घर है
और मैं उस घर का एक
लटकता हुआ हिस्सा।
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