सच, कल का






मैं तुम्हे देखती हूं 
तुम्हारे कल में
बेबस और लाचार
अपनी एक बात 
रखने के लिए 
मसक्त करते हुए।
मैं तुम्हे देखती हूं
खुद को खींचते हुए
अपने आप पे भरोसा 
दिलाने के लिए।
मैं तुम्हे देखती हूं
दो मुहाने पे
जहां से पीछे जाना 
और आगे आना दोनो 
मुश्किल है।
मैं तुम्हे देखती हूं
आंसुओं के समुंदर में
जो हर रोज गहरा 
होते जा रहा है।
मैं तुम्हे देखती हूं
आज में खड़े होके
कल को समेटने की 
बेबुनियाद कोशिश करते हुए।

2 comments:

Dr. Neeshma Jaiswal said...

Very nice and self-explainable pain of women...........Expressive. Keep Going Suruchi...................All the best

suruchi kumari said...

Thank you Ma'am 😊