Skip to main content

Mess का खाना





चार महीनों से भी ज्यादा दिनों तक mess का खाना खाने के बाद मैं यही समझ पाई हूं की मुझे क्या नही खाना है। जब मैं पहली बार हॉस्टल आई थी मुझे menu बड़ा पसंद आया था। 
आह! कितने तरह के खाने है। 
मैं खुश थी। इस वजह से भी की पिछले छह महीनों से जो मैं ठंडा खाना खाते आई हूं उससे निजात मिलेगा। और दोपहर का खाना नसीब होगा। अब जब मेरी उम्मीदें बढ़ गई है तो मुझे पूरा हक है इसे भी क्रिटिसाइज करने का। 
शुरुवात सोमवार से करते है। जैसा कि हमे नही पसंद की कभी संडे के बाद मंडे आए। ठीक उसी तरह मंडे का मूड स्विंग होता है और सुबह सुबह हमारे सामने ब्रेड से झांकते आलू परोसे जाते है। और साथ वाली सीट पर मीठी दलिया नींद में पसरी होती है। आप चाह कर भी ना नहीं कह सकते क्युकी आपके पास और ऑप्शन ही क्या है। कहां तक भागोगे दोस्त! 
मुझे हफ्ते में दोपहर के खाने से ज्यादा शिकायत नहीं रही। दोपहर हर मौसम में अच्छा होता है। दोपहर डूबते टाइटेनिक का म्यूजिक बैंड है। दोपहर अंधेरे कमरे की एक रौशनी है। दोपहर ठंड की इश्क है। 
फ्राइडे की शाम हमे खोफ्ते परोसे जाते है, कद्दू के। I know you are laughing. ख़ैर मुद्दे पे आते है। मुझे कोफ्ते कभी खास पसंद नही थे। और अब कभी आयेंगे भी नहीं। 
हमे पनीर से बड़ी उम्मीद थी पर उन्होंने मेरे टेस्ट बड्स खराब कर रखे है। अब मैं पनीर का नाम ही नही सुनना चाहती।
थर्सडे की सुबह खुश मिजाज होती है। ये उत्तपम और सांभर के साथ आती है। लेकिन अगर थर्सडे को थोड़ा सा भी आलस आया तो मिजाज की खुशी कच्चे उत्तपम से कम की जाती है। 
वेडनेसडे। बड़ा भारी दिन, सुबह से लेकर शाम तक। सुबह में आपको थाली में लहराती हुई सरसो के खेत से आई पोहे मिलेंगे। और दोपहर पनीर से नवाजा जाता है। शाम होते ही आपके मुंह के अंदर तेल से लिपाई की तैयारी की जाती है और बनाया जाता है छोले भटूरे। मैं ये बताती चलूं की कभी मुझे छोले भटूरे ठीक लगा करते थे। 
शिमला मिर्च और सब्जी का कॉम्बिनेशन बिलकुल नमक और चीनी का मेल है mess में। मुझे आज तक समझ नही आया की शिमला मिर्च mess का दरवाजा देख के इतना रूठ क्यू जाता है। 
रही सही कसर संडे का गुलाबजामुन पूरा कर देता है। मैं अपने फेवरेट डेजर्ट में इसका नाम रखने से पहले जरूर सोचूंगी। 
हां एक और चीज है वेडनेसडे के दही बड़े। बहुत ही नायब स्वाद होता है जिसे डाइजेस्ट कर पाना मेरे बस की बात नही है। 



Comments

Popular posts from this blog

भगवान

किताबों की पढ़ी पढ़ाई बातें अब पुरानी हो चुकी हैं। जमाना इंटरनेट का है और ज्ञान अर्जित करने का एक मात्र श्रोत भी। किताबों में देखने से आँखें एक जगह टिकी रहती हैं और आंखों का एक जगह टिकना इंसान के लिए घातक है क्योंकि चंचल मन अति रैंडम। थर्मोडायनेमिक्स के नियम के अनुसार इंसान को रैंडम रहना बहुत जरूरी है अगर वो इक्विलिब्रियम में आ गया तो वह भगवान को प्यारा हो जाएगा।  भगवान के नाम से यह बात याद आती है कि उनकी भी इच्छाएं अब जागृत हो गई हैं और इस बात का पता इंसान को सबसे ज्यादा है। इंसान यह सब जानता है कि भगवान को सोना कब है, जागना कब है, ठंड में गर्मी वाले कपड़े पहनाने हैं, गर्मी में ऐसी में रखना है और, प्रसाद में मेवा मिष्ठान चढ़ाना है।  सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इंसान इस बढ़ती टेक्नोलॉजी के साथ यह पता कर चुका है कि भगवान का घर कहां है? वो आए दिन हर गली, शहर, मुहल्ले में उनके घर बनाता है। बेघर हो चुके भगवान के सर पर छत देता है।  इकोनॉमी की इस दौड़ में जिस तरह भारत दौड़ लगा के आगे आ चुका है ठीक उसी तरह इंसान भी भगवान से दौड़ लगा के आगे निकल आया है। अब सवाल यह है कि भगवान अग...

कमरा नंबर 220

बारिश और होस्टल आहा! सुकून। हेलो दी मैं आपकी रूममेट बोल रहीं हूं, दरवाजा बंद है, ताला लगा है। आप कब तक आयेंगी।  रूममेट?  रूममेट, जिसका इंतजार मुझे शायद ही रहा हो। कमरा नंबर 220 में एक शख्स आने वाला है। कमरा नंबर 220, जो पिछले 2 महीनों से सिर्फ मेरा रहा है। सिर्फ मेरा।  मैंने और कमरा नंबर 220 ने साथ-साथ कॉलेज की बारिश देखी है। अहा! बारिश और मेरा कमरा कितना सुकून अहसास देता है। बारिश जब हवा के साथ आती है तो वो कमरे की बालकनी से अंदर आके करंट पानी खेल के जाती है। कमरा, जिसपे मेरा एकाकिक वर्चस्व रहा है। कमरा, जिसमे मैं कॉलेज से आते ही धब्ब से बिस्तर पर पड़ के पंखे के नीचे अपने बाल खोल कर बालकनी से बाहर बादल देखा करती हूं। कमरा, जिसे मैंने अब तक अकेले जिया है।  हेलो? हां, मैं अभी ऑडिटोरियम में हूं, तुम कहां हो? मैं होस्टल में हूं। कमरे के बाहर। कितने देर से खड़ी हो? सुबह से ही आई हूं। ऑफिस का काम करा के ये लोग रूम अलॉट किए है।  अच्छा..... यार मैं तो 6 बजे तक आऊंगी। तुम उम्मम्म.... तुम्हारे साथ कोई और है? पापा थे चले गए वो। अच्छा, सामान भी है? हां, एक बैग है। अभी आना ...

टपकता खून

तुम्हारे पर्दे से टपकता खून  कभी तुम्हारा फर्श गंदा नहीं करता वो किनारे से लग के  बूंद बूंद रिसता है  मुझे मालूम है कि  हर गुनाहगार की तरह  तुम्हे, तुम्हारे गुनाह मालूम है पर तुम्हारा जिल्ल ए इलाही बन  सबकुछ रौंद जाना  दरवाजे पर लटके पर्दे पर  और खून उड़ेल देता है।