घर


                              (@chitransh_12_)


परिक्षा देते वक्त ये सीखा 
की एक पड़ाव पार करने के बाद
जिंदगी सेट हो जाती है। 
चार दिवारी से बाहर 
निकला तो
पूरी जिंदगी वीरान दिखी।
जिंदगी सेट करने के 
लिए मैं ऐसे भागा, 
की खुद को आज  
आईने में देखता हूं
तो बचपन कोने में बिखरा 
मिलता है।
और जवानी धूप में तप के
खाक हो चुकी होती है।
धुंधली नजरों से सपने भी
अब धुंधले दिखने लगे है
उस सपने में मुझे मेरा 
घर दिखता है
जिसे बनाने मैं निकला तो हूं
पर कभी पहुंच पाऊंगा ये 
कहना मुश्किल है। 


तुम हो ना


                               (@nikumbh1001)


सुबह उठ के खुद के सिरहाने 
निहारना अब अच्छा लगने लगा है।
तुम्हारे बालों की भीनी खुशबू 
और आसमान से सूरज का झांकना
मसाले चाय की तरह काम 
करती है। 
ये सब कुछ है, क्योंकि तुम हो।
तुम हो ना?
जिंदगी की बहुत सारी उलझनें
पीछे छोड़ आया हूं
या, यूं कहूं की 
तुम्हारे आने से उलझनें अब 
उलझन नहीं लगती
ऐसा है, क्योंकि तुम हो।
तुम हो ना?
मेरे अंदर एक कौतूहल हुआ
करता था। 
एक ऐसा द्वंद जो मुझे 
मुझसे दूर लेजाके
ना जाने किस कोने में 
फेक चुका था। 
तुम्हारा आना मेरे कौतूहल 
से बाहर आना है।
क्योंकि तुम हो।
तुम हो ना?
एक अंधेरी शाम गुजारी है मैने
खुद के बिना।
अच्छा, ठीक है 
ना जाने कितनी शामें गुजारी है
खुद के बिना। 
पर अब, जब तुम हो
तो खुद का साथ अच्छा लगता है।
तुम हो ना?


अपने से सपने




तुम्हारा प्यार में होना 

तुम्हारा प्यार में होना अच्छा है
पर तुम्हारे प्यार में तुम्हारा 
गुम हो जाना मुझे डरा जाता है।
मैंने ये नहीं कहा की 
तुम गुलाबों की पंखुड़ियों पर
उसके नाम ना लिखो।
लिखो, बेशक लिखो 
पर ध्यान से, 
उसके नीचे के काटें
तुम्हे चुभे ना।
मैंने ये नहीं कहा की 
उसके इंतजार में ना बैठो,
बैठो, बेशक बैठो
पर अपने आप को साथ लेके बैठना।
मुझे याद है तुमने कहा था
वो तुम्हारे लिए 
फूलों का गुलिस्ता बनाता है।
हां, ये भी याद है की 
तुम्हारे कहने पे वो 
कॉलेज के सिक्योरिटी गार्ड को 
चकमा देके तुम्हारे लिए
गुलाब के फूल लाया था।
और, यह भी याद है की उसने कहा
था की, अभी जैसा चल रहा है 
चलने देते है।
मुझे ये बात डरा जाती है।
क्युकी तुम यहां खड़ी होके
उसके सपने में बूढ़ी हो चुकी हो।
उसके आंगन में सुबह का सूरज हो चुकी हो।
उसके रात में आसमान पर टंगा चांद हो चुकी हो।
तुम उसके सपने में बूढ़ी हो चुकी हो। 





हर गली

हर गली से तन्हा निकली हूं, हर महफ़िल के बाद
वो आए मेरे आंसू सूखने के बाद।
वो कहते थे तुम्हारा होना मेरा होना है
वो छोड़ गए बस एक मोड़ के बाद।





उस आसमां को चाहा मैने जिसपे सितारा ज्यादा था 
अक्सर उस शख्स ने तोड़ा है मुझे जिसपे भरोसा ज्यादा था। 








ख्वाब

मेरा हर रात सोने जाने से पहले तुम्हे सोचना 
अब एक आदत बन चुकी है।
हर रात तुम मेरे साथ होते हो
अभी तुमने मेरे बाल सहलाए है
और देखो ना वो फिर से मेरे चेहरे पे आ लगे।
मेरी आंखों में कुछ है? क्या?
मेरा चेहरा
मेरा शर्म से लाल हो जाना 
और अपना सिर तुम्हारे सीने 
से जड़ कर देने का सिलसिला 
पुराना है।
मेरी हर धीमी आवाज पे तुम्हारा 
जवाब आना
कितना सुकून देता है मुझे 
और कल रात जो तुम मेरे सिरहाने बैठे थे
कुछ कहने आए थे क्या?
और आज दोपहर भी मेरे
सपने में टहल के गए हो
क्या बात है आखिर?
क्या तुम याद ज्यादा करने लगे हो मुझे
या मैं तुम्हे अपने आस पास देखना चाहती हूं
देखो ना रात के १२ बज चुके
और नींद अभी भी नही आ रही। 






तुम्हारे सारे वादे की झूठी तस्वीरें देखीं है
तुम्हारे आखों में किसी की सूरत देखी है








लिखती हूं 

हां, लिखती हूं आज भी तुम्हारे बारे में 
हां, याद आते हो तुम आज भी मुझे।
कभी गुस्से की पोटली के साथ 
तो, कभी नर्म यादों की शाम लेके। 




मैंने हर बार कोशिश की है खुशी लिखने की पर हमेशा मैने दर्द उतारा है पन्नों पर। मुझे आंसू दिखे है ज्यादा। ऐसा नहीं है की वो औरत रोती ही रहती है पर उसके हसीं में भी रोना दिखता है मुझे। 





हर सूखे फूल की खुशबू समाज ने छीनी है। 








धूप 

धूप अब चुभने लगी है... 
सर्दी के जाते ही सूरज 
ऐसे माथे पे चढ़ आया हो
मानो किसी चीज से नाराज 
होके मुंह फूला के बैठा हो। 
तुम्हारे शर्ट की छांव है 
जो आज कल सुकून दिया करती है
आशा करती हूं की
तुम्हारा छांव यूंही बना रहे।
बारिशों में भी तुम 
मुझे संजो के रखने के 
तरीके ढूंढ लोगे
इसका मुझे भरोसा है। 









प्रबल सोच
एक सोच है जहन में जो दिन-ब-दिन प्रबल होती जा रही है। मुझे ऐसा लगता है आप जरूर मिलोगे मुझसे। आपका मिलना हमे एक डोर से बंधेगा। ऐसी डोर जिसमे हम दोनों ही बंधना चाहते हों। मुझे ऐसा लगता है की सालों से आप बैठे, मेरा इंतजार कर रहे है पर, कहना जरूरी नहीं समझा। मैंने देखा है आपको छुप-छुप के मुझे देखते हुए। वो नजर याद है मुझे आज भी। जमाने के हवाले से मैं कहूंगी नहीं कुछ, क्यूंकि, मैं जरूरी नहीं समझती। हां, ये जरूर कहना चाहती हूं की, अभी के हालात में मेरा और आपका एक मोड़ पे मिलना शायद ही हो पाए। फिर भी अब मन ये कहता है की एक शाम हमारी जरूर होगी, तो जरूर होगी।  उस शाम के इंतजार में .......