घर


                              (@chitransh_12_)


परिक्षा देते वक्त ये सीखा 
की एक पड़ाव पार करने के बाद
जिंदगी सेट हो जाती है। 
चार दिवारी से बाहर 
निकला तो
पूरी जिंदगी वीरान दिखी।
जिंदगी सेट करने के 
लिए मैं ऐसे भागा, 
की खुद को आज  
आईने में देखता हूं
तो बचपन कोने में बिखरा 
मिलता है।
और जवानी धूप में तप के
खाक हो चुकी होती है।
धुंधली नजरों से सपने भी
अब धुंधले दिखने लगे है
उस सपने में मुझे मेरा 
घर दिखता है
जिसे बनाने मैं निकला तो हूं
पर कभी पहुंच पाऊंगा ये 
कहना मुश्किल है। 


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2 Comments

Akash Tripathi said…
Sacchai😃
Badhiya likha hai