दीवार पर टंगा आईना क्या तुम्हे देखता है? या, तुम उसे निहारती हो क्या देखती हो आईने में? खुद को या, उन नज़रों को जो तुम्हे देखते है। क्या ढूंढती हो आईने में? अभी का सच या, कुछ देर में आने वाली बहार। क्या तलाशती हो आईने में? खुद को या, पीछे छूट चुके पल को। माथे की बिंदी जो तुम आईने पर टाक जाती हो उसमे कोई अपना चेहरा निहार जाता है। अपने चेहरे को बिंदी की जगह रख कर खुद को सजा जाता है। तुम क्या झंझोरती हो आईने से उसे, या, उसके देखे रूप को। बिस्तर के एक कोने में बैठा शख्स तुम्हे आईने से दूसरे कोने में तलाशता है दूसरे कोने में बैठी तुम आईने से क्या पूछती हो? उसकी नज़रों का सच या, उसके पीछे की उधेड़बुन जो शायद टूट कर बिखर जाना चाहता है।