सर्दी की सुबह




मैं उनसे पहली बार 
सर्दी की एक खुबसूरत 
सुबह मिली थी।
सफेद शॉल में लिपटे उनके 
बदन ने मुझे देखा था 
उनका मुझे देखना और 
यह देख के शर्मा जाना 
की वो मुझे देख रहे है 
लाजमी था। 
ठंड की अकेली दोपहर हमने 
साथ गुजारी थी
बिना एक दूसरे से बात किए 
बीच बीच में बस कुछ 
छोटी छोटी बातें हुई थी
जैसे शहर कैसा है?
मौसम कैसा है?
यह कंबल सही है की नहीं?
खाना खाओगी? 
बस इतनी ही बातें थी हमारी
अगली सुबह मेरा आखिरी दिन था
उनके साथ
सोमवार का दिन 
और मैं जा रही थी
सोमवार को भी कोई जाता है भला?
सोमवार को दुनिया जहान के काम होते है
कोई कैसे बैठेगा मेरे सामने 
पर मैं उसी दिन जाने वाली थी
सुबह सुबह पहली बार मैंने उन्हें 
तैयार होते हुए देखा था 
बहुत सुंदर लग रहे थे वो 
मैं एक बार उनकी आंखों में 
देखना चाहती थी
मैं उनकी तरफ देखती रही
पर उन्होंने मुड़ के मुझे नहीं देखा।

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