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Showing posts from September, 2021

गलतफहमी

  मैं जितना उसके करीब जाने की कोशिश करती हूं,  वो अपनी बातो से उतना ही मुझे  दूर करता जाता है।  मैं उसके दरवाजे पे खड़ी दस्तक देती हूं, वो मेरे मुंह पर दरवाजा बंद कर के चला जाता है । मैं खिड़कियों से सरक कर उसके  आंगन से चांद देखना चाहती हूं। वो छत पर बैठ के अमावस का इंतजार करता है। ना मैने गलती की है अपने बातों को रख के  ना उसने ठीक ढंग से सच रखा है  गलतफहमी का सिलसिला कुछ ऐसा चला है कि, दर्द देने में ना मैने कमी की है ना उसने। 

AGE BAR

   We are living in the age of refined and cooked situations. No one is ready to accept the new raw material because it's not normal. We as human beings always forget that we have a certain time period on this planet. And we are temporary here. So is it ok go with learning according to the age bar?  Age is definitely not a number which tells you how old are you, but it also shows your appearance, your knowledge, your patience, your attitude to handle the problems and many more. These things comes with age. But, it doesn't mean that anyone can not learn anything at any age.  We are not permanent resident of this planet. So, it is completely wastage of time and energy to think about the people who will question you when you learn something new at different age, which according to society is not appropriate. Being 22 years old and observing the people I came to know that, people have dual face. They will say good things when you are doing well in your life and they will...

बेवकूफी

  ना जाने कितनी रातें खुद को खुद में समेटे आंसुओ के साथ गुजारी।  सब कुछ सही साबित करने का पागलपन, अपनी गलती छुपाने  की नाकाम कोशिश, लोगो के सामने  सिसकियां दबा के  अपने चेहरे पे एक मुस्कान ओढ़ना, कितना गलत किया है मैने? हर सुबह का बेसब्री से  इंतजार करना  इसलिए कि रातें भले  ही काली हो  सुबह का सवेरा सब कुछ  बदल देगा।  कितनी बेवकूफ थी मैं?

आओ तुम्हें मना लूं

  तुम रूठ गई हो क्या? आओ तुम्हें मना लूं। कमरे की बत्तियां बुझा के छिटकली के पीछे  सिसकियां दबा दूं। आओ तुम्हें मना लूं। शहर का सबसे सुंदर  जेवर तुम्हें दिला दूं। रेशम, मोती, मालाओं से  आज तुझे सजा दूं । आओ तुम्हें मना लूं। दूध, मलाई, रबड़ी, कुल्फी  बोलो क्या_क्या खाओगी ? धूप, धूल से तुम्हें छिपा के  ५स्टार की सैर तुम्हें करा दूं। आओ तुम्हें मना लूं।  परदे पर कोई पिक्चर चलवा दूं  या, केनवास में तुम्हें छुपा लूं? आओ तुम्हें मना लूं।

प्रेम

  प्रेम की कोई एक परिभाषा नहीं होती है, तो जाहिर सी बात है कि इसे कुछ शब्दों में परिभाषित नहीं किया जा सकता है। प्रेम अलग-अलग लोगों के लिए अलग अलग शब्दों में बयां होता है। प्रेम की खूबसूरती यह है की ये हो जाता है किया नही जाता। यह एक मन का भाव है। जो कभी भी किसी के लिए भी आ जाता है।  क्या प्रेम एक व्यक्ति विशेष के लिए होता है? पूर्णतः नही, प्रेम कभी एक व्यक्ति के लिए नहीं हो सकता है। हम उन तमाम चीजों से प्रेम करना शुरू कर देते है जो उस व्यक्ति विशेष से जुड़ा होता है। हमें हर चीज खूबसूरत लगने लगती है और चारो तरफ वसंत ही वसंत दिखता है।  क्या प्रेम में इच्छा की चाह रखना सही है? जहा किसी इच्छा की चाह हो, या यूं कहूं की, किसी चीज को पाने की लालश हो, बदले में अगर हम कुछ पाना चाहे तो वो प्रेम कैसे हो सकता है? प्रेम है तो, हम साथ क्यू नही है? राधा ने भी कृष्ण से प्रेम किया है और मीरा ने भी। जब मन के तार जुड़े हुए है तो तन के मेल का क्या मोल। प्रेम एक बार हो जाए तो वह शाश्वत हो जाता है। वो कभी मरता नहीं है। प्रेम का यह भी मतलब नहीं है की हम सिर्फ एक इंसान की खूबियों को तलाशे और गल...