प्रेम

 



प्रेम की कोई एक परिभाषा नहीं होती है, तो जाहिर सी बात है कि इसे कुछ शब्दों में परिभाषित नहीं किया जा सकता है। प्रेम अलग-अलग लोगों के लिए अलग अलग शब्दों में बयां होता है। प्रेम की खूबसूरती यह है की ये हो जाता है किया नही जाता। यह एक मन का भाव है। जो कभी भी किसी के लिए भी आ जाता है। 

क्या प्रेम एक व्यक्ति विशेष के लिए होता है?

पूर्णतः नही, प्रेम कभी एक व्यक्ति के लिए नहीं हो सकता है। हम उन तमाम चीजों से प्रेम करना शुरू कर देते है जो उस व्यक्ति विशेष से जुड़ा होता है। हमें हर चीज खूबसूरत लगने लगती है और चारो तरफ वसंत ही वसंत दिखता है। 

क्या प्रेम में इच्छा की चाह रखना सही है?

जहा किसी इच्छा की चाह हो, या यूं कहूं की, किसी चीज को पाने की लालश हो, बदले में अगर हम कुछ पाना चाहे तो वो प्रेम कैसे हो सकता है?

प्रेम है तो, हम साथ क्यू नही है?

राधा ने भी कृष्ण से प्रेम किया है और मीरा ने भी। जब मन के तार जुड़े हुए है तो तन के मेल का क्या मोल।

प्रेम एक बार हो जाए तो वह शाश्वत हो जाता है। वो कभी मरता नहीं है। प्रेम का यह भी मतलब नहीं है की हम सिर्फ एक इंसान की खूबियों को तलाशे और गलतियों को नजरंदाज कर दे। प्रेम पूर्ण भाव है और वो पूरी तरह से सबको अपनाता है। बिना किसी भेदभाव के।

प्रेम दुनिया की वह ताकत है जो घृणा जैसे जिद्दी दाग को बड़ी सरलता से धो सकता है।

प्रेम को समझना सबसे बड़ा प्रेम है।


 

4 comments:

Astha Writes said...

Spread "LOVE" , "BE" love :)

Maneeshi Mani said...

Aur Sach toh ye hai ki Jab tak hum khud Prem se Paripudh naah ho tab tak kisi Aur vayakti se Prem nahi kar sakte...kyuki Prem se bhara hi Insaan , Prem samjh sakta h aur baat sakta h.
And you don’t need anybody to complete you in love, they only complement you!!

suruchi kumari said...

True

suruchi kumari said...

bahut sundar