अरे, बहुरिया तैयार हुई की नहीं? लोग आयेंगे देखने जल्दी करो भई।
झुमरी अपने आप को एक नये जगह पे पाती है।
लाल जोड़ा उसके लिए जादू की छड़ी है जैसे। कहां रोज सुबह जागो तो चूल्हे लिपना, घर बहारने, खाना बनाने की झंझट और अब, अब तो बस तैयार होना है। हर सुबह लोग मुझे देखने आयेंगे और बदले में मिलेंगे नेग, कपड़े और जेवर।
अच्छा सुन, तुझे पता है आज मुझे क्या मिला?
तू बतायेगी तो ना?
इन्होंने मुझे कान के झुमके दिलवाये, वो भी सोने के।
सच?
हाँ, और कहा है की अगली बार जब वो कलकत्ते से आयेंगे तो गले का भी दिलायेंगे।
अरे वाह झुमरी तेरे तो दिन पलट गए।
झुमरी सरमाते हुए अपने आप को आईने में निहारती है। अच्छा चल अब तंग मत कर, मैं फोन रखती हूं।
प्रदीप कुछ पैसे झुमरी की तरफ बढ़ाता है।
मैं कल जा रहा हूं।
इतनी जल्दी?
हां, मालिक का फोन आया था। कपड़े की डिमांड बढ़ गई है, तो मेरा वहा होना जरूरी है, नहीं तो मेरी नौकरी चली जायेगी।
झुमरी फटाक से प्रदीप के मुंह पे हाथ रख देती है।
अजी! ऐसा ना कहो।
प्रदीप उसकी आंखो में देखता है। उसका हाथ अपने हाथ में लेके कहता है, इस बार तुम्हारे लिए पीली साड़ी लेके आऊंगा।
और गले का?
वो भी, प्रदीप हंसते हुए कहता है।
तुम घर का ख्याल रखना।
हम्म! झुमरी सर हां में हिला के कहती है।
प्रदीप के चले जाने पर झुमरी को कमरा काटने को दौड़ता। बिस्तर में औंधे मुंह पड़ी रहती और तकिए से मुंह छुपा के रोया करती थी।
बहुरिया घर के काम काज में हाथ बटा दिया करो अच्छा लगेगा।
जी, झुमरी ने दबे आवाज में कहा।
फिर से काम? उसके अंदर से एक जोर की आवाज आई।
जिंदगी फिर वही करवट सोयेगी क्या?
दूसरे ही पल उसने ये सोच झटक के मन से निकाल दिया।
२ ही तो लोग है, बिटिया इनकी ससुराल ही है और देवर जी तो अपने काम काज को लेके बाहर ही रहते है। २ लोगों में कितना ही काम पड़ेगा। ये सोच कर उसने अपना मन शांत किया।
जैसे जैसे झुमरी घर गृहस्ती में रमती गई। उसके ख्वाब मिट्टी में घुल के चूल्हे पे लिपते गये।
७ महीने हो चुके है शादी को और अभी तक प्रदीप नही आये। क्या शादी में अकेलापन लिखा है भगवान ने मेरी जिंदगी में?
ये ख्याल उसके ज़हन में कौंधता रहता। वो एक बार प्रदीप को देखना चाहती थी, उसके गले लग के रोना चाहती थी। तोहफे में उसे वक्त चाहिए था, जो उसे मिल नही पा रहा था।
झुमरी का ज्यादातर वक्त घर की चारदीवारी में बीतता। उसके पास अपना खुद का वक्त बस शाम का था। जिस वक्त वो लकड़ियों के साथ खुद को समेटती थी।
घर आते ही उसे प्रदीप के आने की खबर मिली। वो सब कुछ नया करना चाहती थी। घर का हर कोना सजा देना चाहती थी। उसके पैरों में पंख लग गए थे।
खिड़की के बाहर सब कुछ धुवां सा था, सूरज आसमान पे आने से मना कर रहा था और हर तरफ एक गुप्प सा सन्नाटा था, पर झुमरी की जिंदगी में इस वक्त खुशियों की झंकार आई थी।
आज जगोगी नहीं? प्रदीप ने उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहा।
अभी थोड़ी देर में। उसने प्रदीप में खुद को खोते हुए कहा।
मैं तुम्हारे लिए कुछ लाया हूं।
मुझे कुछ नही चाहिए। उसने प्रदीप को अपने पास खींचते हुए कहा मानो उसे आभास हो की प्रदीप अगर एक बार के लिए भी उठा तो वो उससे बहुत दूर चला जायेगा।
मुझे सिर्फ आपका वक्त चाहिए। उसने अपना सर उसके सीने में ये कहते हुए घुसा दिया।
पगली! प्रदीप ने एक लंबी सांस ली।
और अम्मा? बहुरिया आपका ख्याल तो रखती है ना? प्रदीप ने मां से पूछा।
हां बेटा, रखती है। मेरे साथ साथ अब घर का ख्याल रखना भी सिख गई है।
प्रदीप ने मुस्कुराकर झुमरी की तरफ देखा।
और बेटा कितने दिन रुकना है?
अम्मा अभी १४ दिन।
बस १४ दिन?
अम्मा! उसने बेबसी से कहा।
ठीक है बबुआ घर गृहस्ती भी तो चलाना जरूरी है।
अम्मा, सोच रहे है की अगली बार आयेंगे तो ई करकट हटवा के ढलवा दे। बढ़िया भी हो जायेगा। आराम भी आ जायेगा बारीश में।
हां ए बेटा, ई तो बड़ा काम होजाए अगर हो जाए तो। पानी बुनी के दिन में और आंधी तूफान से राहत हो जाए। इंसान शांति से सो सोकता है फिर।
१४ दिन की छुट्टी में कौन आता है? बिस्तर से कपड़े समेटते हुए झुमरी ने कहा।
जानती हो सबकुछ फिर भी क्यू पूछ रही हो?
ले चलिए मुझे अपने साथ।
और यहां घर कौन देखेगा?
झुमरी बैठ के रोने लगी।
मेरा मन नहीं लगता अकेले। दिन भर अगर काम में गुजर भी जाए तो रात मुझे निगल जाने के लिए बैठी होती है।
झुमरी फोन पकड़ के रो रही थी।
अजी, आप पापा बनने वाले है।
सच?
हां।
तुम रो क्यों रही हो?
पता नही बस रोना आ गया।
रो मत पगली सब ठीक हो जायेगा। तुम बस अपना ध्यान रखना। मैं अब थोड़े पैसे और भेज दिया करूंगा।
आप कब तक आयेंगे?
अभी तो कुछ कह नहीं सकता पर कोशिश करूंगा जल्द आने की।
अच्छा सुनिए मैं कह रही थी मैं मायके जाना चाहती हूं। आप अम्मा से कह दीजिए गा की मुझे जाने दे।
ठीक है।
हे भगवान! पाहिला लईका आ ऊ भी बेटी? प्रदीप की मां ने फोन पे रुआसा मुंह बना के बोला। वो इतनी ज्यादा दुखी थी मानो उनपे दुखों का पहाड़ टूट पड़ा हो।
झुमरी प्रदीप को बताने से संकोच कर रही थी। उसे डर लग रहा था कही प्रदीप उससे प्रेम करना छोड़ ना दे। कहीं उसके रिश्ते में खटास न आ जाए।
एक तरफ वो अपने नवजात को देखती और दूसरे तरफ फोन को। बड़ी हिम्मत करके उसने फोन लगाया।
बेटी हुई है।
जय हो लक्ष्मी मईया की।
झुमरी हंसते हंसते रोने लगी।
बेटी पैदा होने के बाद से झुमरी की सास का रवैया बदल चुका था। वो हर बात पे उससे टोकती रहती। कल तक जो बातें और हरकतें झुमरी की अच्छी लगती थी वो अब उन सब पे सवाल उठाती।
बच्ची से उन्हें लगाव न था। जब भी वो रोती वो झुमरी पे खूब चिल्लाती। ना उसकी आवाज, ना शक्ल देखना पसंद करती थी।
झुमरी बेचारी मसोस के रह जाती।
झुमरी प्रदीप की बाहों में सिसक के रोये जा रही थी।
मुझे भी ले चलिए अपने साथ।
झुमरी!
मैं कुछ नही सुनना चाहती। मैं आपका ध्यान रखूंगी वहा। खाना बना के खिलाऊंगी अपने हाथो का।
और यहां?
मुझे नहीं पता।
ये नही हो सकता है, अम्मा अकेले कैसे काम करेंगी।
कुछ दिनों के लिए ही ले चलिए। वो बस रोए जा रही थी
प्रदीप अपना सामान बांध रहा था, और झुमरी अपने ख़्वाब गोएठे के साथ चूल्हे में डाल के उसके लिए नाश्ता बना रही थी।