सुबह की शोर में सबकुछ शांत था। अरे, बहुरिया तैयार हुई की नहीं? लोग आयेंगे देखने जल्दी करो भई। झुमरी अपने आप को एक नये जगह पे पाती है। लाल जोड़ा उसके लिए जादू की छड़ी है जैसे। कहां रोज सुबह जागो तो चूल्हे लिपना, घर बहारने, खाना बनाने की झंझट और अब, अब तो बस तैयार होना है। हर सुबह लोग मुझे देखने आयेंगे और बदले में मिलेंगे नेग, कपड़े और जेवर। अच्छा सुन, तुझे पता है आज मुझे क्या मिला? तू बतायेगी तो ना? इन्होंने मुझे कान के झुमके दिलवाये, वो भी सोने के। सच? हाँ, और कहा है की अगली बार जब वो कलकत्ते से आयेंगे तो गले का भी दिलायेंगे। अरे वाह झुमरी तेरे तो दिन पलट गए। झुमरी सरमाते हुए अपने आप को आईने में निहारती है। अच्छा चल अब तंग मत कर, मैं फोन रखती हूं। प्रदीप कुछ पैसे झुमरी की तरफ बढ़ाता है। मैं कल जा रहा हूं। इतनी जल्दी? हां, मालिक का फोन आया था। कपड़े की डिमांड बढ़ गई है, तो मेरा वहा होना जरूरी है, नहीं तो मेरी नौकरी चली जायेगी। झुमरी फटाक से प्रदीप के मुंह पे हाथ रख देती है। अजी! ऐसा ना कहो। प्रदीप उसकी आंखो में देखता है। उसका हाथ अपने हाथ में लेके कहता...