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Showing posts from October, 2018

दुनिया रंग बिरंगा

न जाने कितने इमारत बने हैं कागजों पे न जाने कितने जिंदा लाशें सड़कों पे चल रहि है । चलिये उन सब से भी उनका हाल पूछ लेते हैं जो सालों से कब्रों मे कैद है न जाने कितने लोगों ने कितने जीवन उथल-पुथल कर दी है चलिए उन चंद लोगों को आज ढूंढ लेते है यू तो मगरूर इमारतें ताकतों का प्रदर्शन करती है कुछ चन्द गार मिट्टी से चलिए अपना आशियाँ बना लेते हैं ।

मिश्रा जी और कैमरा

मिश्रा जी लाॅ के स्टूडेंट है। लाॅ का स्टूडेंट होने का मतलब है कि दुनिया भर की तमाम चीजों से खुद-ब-खुद हि नाता जुड़ जाना, जैसे एक बच्चे का मां से जुड जाता है वो भी जन्म लेने के पहले हि। जैसे पत्ते हवाओ मे बिना लहरे नही रह सकते,ठीक उसी तरह लाॅ के स्टूडेंट किसी भी बात पे तार्किक बहस करने से पिछे नही रह सकते । उनकी अनगिनत विचारधारायें उसी तरह उफान मारती है जैसे फुल को देख के भैरें, और वो अपने विचारों को शब्दों में गढ़ के प्रस्तुत करते जाते हैं । अगर मैं ये कहु कि वो इसे देश मे क्रांति लाने का माध्यम भी समझते हैं तो शायद मै गलत नहीं हूँ । मिश्रा जी भी लिखते हैं, काफी अच्छा लिखते हैं  और अपनी प्रतिक्रिया से क्रांति लाने की कोशिश कर रहे हैं या अपनी बुद्धिमत्ता का प्रयोग ये कहना मुश्किल है । कलम और पन्नों का नाता सकुशल चल रहा था की  उन्हे एक मैसेज आया, कि उनके दोस्त पर्यावरण के संदर्भ में एक विडियो बनाना चाहते हैं और उसमें वो एक पैनलिस्ट की भूमिका निभायेंगे । ये विडियो एक फेसबुक पेज के लिए होने वाला था । इस पेज को कुछ लोग मिलकर चलाते है, और पर्यावरण के संदर्भ में तमाम तरह...

दिल हारना क्या होता है

महाराज ने कनीज़ से पुछा आपको जितना कैसा लगता है ॽ कनीज़ ने कहा अच्छा लगता है हुजूर जीत तो वो गहना है जो शान से पहना जाता है मुख मण्डल पे प्रकाशित किरणे खुद हि अपना गुणगान करती है पैर इतने हल्के हो जाते है मानो पंख लगाके उड चलेगें बडी मुश्किल से उन्हे जमीनी जुते पहनाने पडते है तन का हर रोम थिरकने लगता है एक ताल छुटा नही कि वो खुद को बेडियो से तोडने को बेताब हो जाते है आँखों में मानो न जाने कितने रत्न जड़ होते हैं अंधेरे को तोड़ ज्वालाओं का अम्बार होता है इतना सब कुछ जीतने के बाद भी हमें वो खुशी अभी तक नहीं मिली क्योंकि हम अपना दिल हारना चाहते है । महाराज ने पूछा दिल हारना क्या होता है ॽ