मिश्रा जी लाॅ के स्टूडेंट है। लाॅ का स्टूडेंट होने का मतलब है कि दुनिया भर की तमाम चीजों से खुद-ब-खुद हि नाता जुड़ जाना, जैसे एक बच्चे का मां से जुड जाता है वो भी जन्म लेने के पहले हि। जैसे पत्ते हवाओ मे बिना लहरे नही रह सकते,ठीक उसी तरह लाॅ के स्टूडेंट किसी भी बात पे तार्किक बहस करने से पिछे नही रह सकते ।
उनकी अनगिनत विचारधारायें उसी तरह उफान मारती है जैसे फुल को देख के भैरें, और वो अपने विचारों को शब्दों में गढ़ के प्रस्तुत करते जाते हैं ।
अगर मैं ये कहु कि वो इसे देश मे क्रांति लाने का माध्यम भी समझते हैं तो शायद मै गलत नहीं हूँ ।
मिश्रा जी भी लिखते हैं, काफी अच्छा लिखते हैं और अपनी प्रतिक्रिया से क्रांति लाने की कोशिश कर रहे हैं या अपनी बुद्धिमत्ता का प्रयोग ये कहना मुश्किल है ।
कलम और पन्नों का नाता सकुशल चल रहा था की उन्हे एक मैसेज आया, कि उनके दोस्त पर्यावरण के संदर्भ में एक विडियो बनाना चाहते हैं और उसमें वो एक पैनलिस्ट की भूमिका निभायेंगे ।
ये विडियो एक फेसबुक पेज के लिए होने वाला था । इस पेज को कुछ लोग मिलकर चलाते है, और पर्यावरण के संदर्भ में तमाम तरह की बातें बताते हैं । कारण के साथ साथ निवारण भी बताते हैं । मतलब एक तरह से क्रांतिकारी कदम।
उनके चेहरे का प्रकाश उनकी खुशी को साफ झलका रहा था। वो इस बात से खुश थे कि कल तक जो वो लिखते थे, जिस हावभाव से लिखते थे, उन सबको एक आवाज मिलने वाली थी।
पर दूसरे ही क्षण वो ये भी सोचते कि वो बोलेंगे क्या ॽ पन्नों पे लिख देना और कैमरे के सामने आके बोलने मे बडा फर्क होता है ।
ऐसी बात नहीं थी कि उनके पास बोलने को कुछ नहीं था, पर कैमरे का भय उनको ठीक उसी तरह खाये जा रहा था, जैसे
न ई नवेली बहू का ससुराल का डर उसे खाये जाता है।
फिर उन्होंने बड़ी हिम्मत करके खुद से कहा ॒
कुछ करना थोड़ी है जो कल तक लिखते आये है वैसेही बोलना है इसमे कैन सी बड़ बात है । सब हो जायेगा ।
खुद को सांत्वना दे रहे थे शायद ।
वो एक पल को खुश होते दुसरे हि पल सकुचाते इसी क्रम में उन्होंने क ई बार अपने आप को आईने के सामने बोलते हुए देख खुश भी हुए और कई बार कुछ बदलाव भी किये।
हां ऐसे ही बोलेंगे ये ठीक रहेगा ।
उन्होंने अपनी तैयारी पुरी कर ली थी और परीक्षा कल होने वाली थी ।
रात को सोते वक्त वो ये भी सोच रहे थे कि क्या पहनेॽ
कुछ अच्छा सा ट्रेडिशनल टाइप पहने या फौरमल हि रहने दे । मन से थोड़ी बहस के बाद फौरमल पे बात पक्की करते हि उन्होंने निद्रा से दोस्ती कर ली ।
हर सुबह अपने साथ नयी आश, नया विश्वास,न ई उमंगें ले के आता है। चाहे रात कितनी भी काली हो सुबह कि किरणे उसमे उजाला भर देती है।
ये सुबह मिश्रा जी के लिए भी एक उजाला ले कर आया था ।
वो अच्छे से तैयार हो के चल पडे इक्जाम को ।
जगह काफी अच्छी चुनी गयी थी बिल्कुल टौपिक के अनुरूप।
गमले में तरह-तरह के पौधे अपनी उपस्थिति पहले से ही दर्ज करा चुके थे । वही पास मे एक टेबल था और दो कुर्सी भी रखी थी । और इन सब के सामने था एक कैमरा। थोड़ी बहुत खलल सडकों पर चल रहे गाड़ियों के हार्ण से हो रही थी पर इन सब से उबारने का जिम्मा हवाओ ने ले लिया था ।
मिश्रा जी कुर्सी पर बैठे और उनके बगल में उनके दोस्त । टेबल पे तमाम तरह के कागजात थे जो हवाओ के साथ उड जाना चाहते थे पर पेपर वेट ने उनका दामन कस के पकड़ा था । ये कागजात यु ही कहि से उठा नहीं लिये गये थे बल्कि काफी रिसर्चड पेपर थे । पुरे के पुरे वैरिफाइड डाटा के साथ ।
जैसा कि मैं पहले भी बता चुकी हूँ लाॅ के स्टूडेंट ( लाॅ से जुडा हर व्यक्ति ) तार्किक बहस हि करते है ।
कैमरा आॅन हुआ और उनके दोस्त ने इंट्रोडक्शन शुरू कर दिया ।
मिश्रा जी एक तरफ कैमरे को देख रहे थे दुसरे हि पल नजरे हटा ले रहे थे , कभी अपने दोस्त को देखते कभी सामने वाले दिवाल को तो कभी टेबल पे पडे कागजात को।
वो डर नहीं रहे थे, बस थोड़े से नर्वस थे।
वो समझ नहीं पा रहे थे कि देखे कहाॽ असमंजस में थे क्योंकि उन्हें लग रहा था कि मानो कैमरे से अनगिनत आंखें उन्हे देखे जा रही हैं । इसलिए वो थोड़े असहज हो रहे थे।
इंट्रोडक्शन खत्म होने के बाद पर्यावरण संरक्षण के संदर्भ में बातें हुईं, काफी वाजीब कारण दिये गये वायु प्रदूषण को लेकर जगह की बनावट से लेकर शहर के रैंकिंग पे भी बात हुई।
हवाओ में प्रदूषित कण बहुत ज्यादा हानिकारक होते है। वो बड़ी आशानी से हमारे शरीर में चले जाते है और तरह-तरह की बिमारियां भी फैलाते हैं ।
अब बारी थी मिश्रा जी के बोलने की शुरुआत उन्होंने शहर के लोकेशन से लेकर सरकार के कुछ कदम और कंस्ट्रक्शन वर्क को वायु प्रदूषण से लिंक करके किया । मतलब पहले हि बाॅल पे चौका ।
पर वो अभी भी कैमरे कि तरफ बहुत कम देख रहे थे।
कैमरा उस वक्त वो खुबसुरत लड़की साबित हो रही थी जिसके आँखों में आप ठहर जाना चाहते हो, और अगर ठहर ग ए तो गुम होने के शतप्रतिशत चांसेज है। और अगर मिश्रा जी गुम हो जाते तो बोलते क्या ॽ
उन्होंने इसका एक अच्छा उपाय सोचा कि कैमरे कि तरफ कम देखना हि सही होगा और अपने बिंदुओं पर ध्यान देना ज्यादा अच्छा होगा । इससे वो अपना कौनफिडेंस मेनटेन कर सकते है।
वार्तालाप जारी रहा काफी प्रमुख कारण दिये गए बढते प्रदूषण को लेकर । कुल मिलाकर ग्यारह मिनट का विडियो मिश्रा जी को घंटे भर का लग रहा था ।
सभी बिंदुओं पर चर्चा करने के बाद अंततः कैमरा आफ हुआ और मिश्रा जी ने चैन की सांस ली ।